Skip to main content

Posts

Featured

हर दौर का यज़ीद हारता है , हर करबला में हुसैन जीतता है.

क़रीब चौदह सौ साल पहले , रेगिस्तान की तपती ज़मीन पर इंसानियत का ऐसा इतिहास लिखा गया, जिसने समय को झुका दिया. यह कहानी है इमाम हुसैन इब्न अली की पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) के नवासे की जो अन्याय के सामने झुके नहीं बल्कि शहादत को गले लगा लिया. मदीना में पलने वाले हुसैन, अपने नाना के आदर्शों सच, करुणा और इंसाफ के सच्चे वारिस थे. लेकिन जब यज़ीद एक जालिम शासक इस्लाम को अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए मोड़ने लगा तो उसने हुसैन से बैअत की मांग की. हुसैन ने दो टूक कह दिया "एक ज़ालिम की हुकूमत को मानना मेरे नबी की तालीम के खिलाफ है." कूफ़ा से मदद की पुकार आई. हुसैन अपने परिवार और चंद साथियों के साथ कूफ़ा की ओर निकले मगर रास्ते में उन्हें खबर मिली यज़ीद की सेना ने लोगों को डरा कर चुप करवा दिया है. फिर भी हुसैन पीछे नहीं हटे. उनके लिए यह सफर किसी तख़्त के लिए नहीं था. यह सफर था सच और इंसाफ की हिफ़ाज़त का. 10 मुहर्रम 680 ईस्वी करबला के तपते मैदान में हुसैन और उनके 72 साथियों को यज़ीद की हजारों की सेना ने घेर लिया. पानी तक रोक दिया गया. बच्चे प्यास से तड़पने लगे. लेकिन हुसैन झुके नहीं....

Latest Posts

आपातकाल की टाइमलाइन इंदिरा से इमरजेंसी तक कैसे टूट गई कांग्रेस की सत्ता

समाज में फैलती अराजकता

एक कप चाय

टोपी शुक्ला: एक दोस्ती, एक सवाल और एक समाज का आईना

बुलडोजर की राजनीति : इमरजेंसी से योगी तक

दिल्ली के शोर में छुपा एक खामोश सवाल — फकीर चंद बुक स्टोर की कहानी

अमेरिका के रेमिटेंस टैक्स प्रस्ताव से भारतीय परिवारों और रुपये पर असर पड़ने की आशंका: GTRI

निशिकांत दुबे के ANI इंटरव्यू पर विवाद

अम्मी की तालीम अब्बू की राह

Waqf Bill: वैदिक काल से लेकर ब्रिटिश काल तक, हिंदू हो या मुस्लिम – पहले कैसे तय होता था किसी जमीन का मालिकाना हक?