दिल्ली के शोर में छुपा एक खामोश सवाल — फकीर चंद बुक स्टोर की कहानी
Political Pinch ( Mozakkir Mokhtar & Sehar Afroz )
एक ऐसी ही जगह है — फकीर चंद बुक स्टोर (Fakir Chand Book Store)
👉 खान मार्केट के बीचो बीच जहाँ करोड़ों के लेन-देन होते हैं.
👉 जहाँ पावरफुल कॉफी मीटिंग्स और लॉबिंग के किस्से चलते हैं.
👉 उसी बाजार में एक कोना ऐसा भी है जहाँ सत्ता नहीं शब्द राज करते हैं.
हम निकलें थे दिल्ली के मुग़ल इतिहास को शूट करने हुमायूं का मकबरा : स्क्रिप्ट तैयार थी, एंगल सोच लिया था. मगर बीच रास्ते में लेखक अनुराग अनंत से मिली एक लाइन ने पूरी कहानी की दिशा मोड़ दी "अगर तुम किताबों को वाकई समझना है तो फकीर चंद बुक स्टोर जाओ."
खान मार्केट का दो चेहरा
एक तरफ़ महंगे ब्रांड, चमचमाती दुकाने और ग्लैमर.
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दूसरी तरफ़ पुरानी दिल्ली की खुशबू समेटे फकीर चंद बुक स्टोर.
न कैमरा सेटअप था न स्क्रिप्ट बस किताबों की खुशबू और यादों की फुहार थी.
Political Pinch का असली सवाल यही है:
👉 क्या दिल्ली सिर्फ सत्ता का केंद्र है?
👉 क्या किताबें, विचार और धीमी पड़ती कहानियां भी इस शहर की आत्मा हैं?
👉 जब पावर के गलियारे तय करते हैं कि कौन सी किताब पढ़नी है तो फकीर चंद जैसे कोने आज भी इस बहस को ज़िंदा रखते हैं
सिर्फ शूटिंग नहीं, सीख भी मिली
📱 मोबाइल कैमरे से शूट.
🎙 कच्ची आवाज़ों को कैद किया बिना माइक और बिना सेटअप के.
☀ दिल्ली की गर्मी में पसीना बहा लेकिन कहानी को महसूस किया.
🎞 एडिटिंग में आवाज़ और विजुअल्स को उसी रफ्तार में रखा जैसे उस दुकान में वक्त थमा हुआ था.
Political Pinch का Takeaway:
"कभी-कभी सबसे बड़ी कहानी, सबसे धीमे स्वर में सामने आती है".
सवाल सत्ता से भी बड़ा है
👉 क्या आज भी ऐसी जगहें बची हैं जहाँ विचारों की आज़ादी की खुशबू मिलती हो?
👉 जहाँ हर पन्ने में एक नया सवाल हो?
👉 जहाँ सत्ता का एजेंडा नहीं है वहां पाठक का मन राज करता है.
तो अगली बार जब आप दिल्ली के पावर कॉरिडोर पर चर्चा करें तो फकीर चंद बुक स्टोर की इस खामोश क्रांति को याद ज़रूर करना.
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