निशिकांत दुबे के ANI इंटरव्यू पर विवाद
झारखंड के गोड्डा से बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे के 19 अप्रैल, 2025 को ANI को दिए इंटरव्यू ने देश में राजनीतिक और कानूनी विवाद खड़ा कर दिया है। दुबे ने सुप्रीम कोर्ट और मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि कोर्ट अपनी संवैधानिक सीमाओं को लांघ रहा है और देश में “गृह युद्ध” को बढ़ावा दे रहा है। उनके बयानों ने विपक्षी दलों और कानूनी हलकों में तीखी प्रतिक्रियाएं उकसाईं है जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में उनके खिलाफ अवमानना याचिका दायर की गई है।
इंटरव्यू में दुबे ने कहा “सुप्रीम कोर्ट अगर कानून बनाएगा, तो संसद और विधानसभाएं बंद कर दीजिए। CJI संजीव खन्ना के नेतृत्व में कोर्ट धार्मिक युद्ध भड़का रहा है, और देश में गृह युद्ध की स्थिति बन रही है।“विपक्षी नेता तेजस्वी यादव ने पलटवार करते हुए कहा, “ऐसी टिप्पणियां सुप्रीम कोर्ट की अवमानना हैं। बीजेपी को जवाब देना होगा।“बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने स्पष्ट किया, “ये दुबे के निजी विचार हैं, पार्टी का इससे कोई लेना-देना नहीं।“
दुबे के बयानों ने न केवल न्यायपालिका और विधायिका के बीच शक्तियों के बंटवारे पर बहस छेड़ दी, बल्कि वक्फ (संशोधन) कानून, 2025 पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई को भी विवाद के केंद्र में ला दिया। उनके आरोपों ने बीजेपी को असहज स्थिति में डाल दिया, क्योंकि पार्टी ने उनके बयानों से दूरी बनाई, जबकि विपक्ष ने इसे लोकतंत्र पर हमला करार दिया।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा, “बीजेपी सुप्रीम कोर्ट को कमजोर करने की साजिश कर रही है। यह संवैधानिक संस्थाओं पर हमला है।“सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल थे, ने 21 अप्रैल, 2025 को सुनवाई के दौरान टिप्पणी की, “संस्थाओं की मर्यादा और प्रतिष्ठा बनाए रखना हम सबकी जिम्मेदारी है।“
निशिकांत दुबे ने इंटरव्यू में सुप्रीम कोर्ट पर कई गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने दावा किया कि कोर्ट संसद द्वारा बनाए गए कानूनों को रद्द कर रहा है और राष्ट्रपति को निर्देश दे रहा है, जो संवैधानिक व्यवस्था का उल्लंघन है। उन्होंने अनुच्छेद 368 का हवाला देते हुए कहा कि कानून बनाना संसद का विशेषाधिकार है, और कोर्ट की भूमिका केवल व्याख्या तक सीमित है।
वक्फ (संशोधन) कानून पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई का जिक्र करते हुए दुबे ने कोर्ट पर पक्षपात का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि कोर्ट मस्जिदों से संपत्ति के कागजात मांगने को गलत ठहराता है, लेकिन मंदिरों के लिए ऐसा नहीं करता।
दुबे ने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों, जैसे अनुच्छेद 377 (समलैंगिकता को अपराधमुक्त करना) और IT एक्ट की धारा 66A को रद्द करने के फैसले पर भी सवाल उठाए, और कोर्ट पर दोहरे मापदंड अपनाने का आरोप लगाया।
इन बयानों के बाद वकीलों और याचिकाकर्ताओं ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी को पत्र लिखकर दुबे के खिलाफ अवमानना कार्यवाही की मांग की। सुप्रीम कोर्ट ने 21 अप्रैल को सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि अवमानन याचिका दायर करने के लिए कोर्ट की अनुमति जरूरी नहीं है, और मामले को अगले हफ्ते के लिए सूचीबद्ध किया। सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ कानून पर सुनवाई के दौरान केंद्र को निर्देश दिया कि 5 मई, 2025 तक कानून के कुछ हिस्सों को लागू न किया जाए।
विपक्षी नेताओं ने दुबे के बयानों को सुप्रीम कोर्ट और लोकतंत्र पर हमला बताया। AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, “बीजेपी कोर्ट को धमकी दे रही है।“ सपा नेता अखिलेश यादव ने तंज कसते हुए कहा, “अगर बीजेपी के 400 सांसद होते, तो सड़कों पर तलवारें और राइफलें घूम रही होतीं।“ यूथ कांग्रेस के वरुण चौधरी ने दुबे के खिलाफ जेल की मांग की।
बीजेपी ने दुबे के बयानों से दूरी बनाते हुए कहा कि यह उनका निजी विचार है। खुद दुबे ने कहा, “मैं पार्टी का अनुशासित सिपाही हूं, जो पार्टी कहेगी, वही करूंगा।“
56 वर्षीय निशिकांत दुबे 2009, 2014, और 2019 में गोड्डा से लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। RSS से कम उम्र में जुड़े दुबे लोकसभा में मुखर वक्ता के रूप में जाने जाते हैं। उनके बयान अक्सर विवादों का कारण बनते हैं, जैसे हाल ही में पूर्व CEC एसवाई कुरैशी और मार्क जकरबर्ग पर उनकी टिप्पणियां।
निशिकांत दुबे का ANI इंटरव्यू न्यायपालिका और विधायिका के बीच शक्तियों के बंटवारे पर एक बड़ी बहस का हिस्सा बन गया है। उनके बयानों ने सुप्रीम कोर्ट की मर्यादा और स्वतंत्रता पर सवाल उठाए, जिसके बाद विपक्ष ने बीजेपी पर संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने का आरोप लगाया। सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका पर अगले हफ्ते सुनवाई होगी, और यह मामला देश की राजनीति और न्यायिक व्यवस्था में लंबे समय तक चर्चा का विषय बना रहेगा।
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