समाज में फैलती अराजकता


आज का समाज तेजी से बदल रहा है, लेकिन इस बदलाव के साथ अराजकता भी बढ़ रही है। अराजकता का अर्थ है व्यवस्था का अभाव, जहां नियम-कानून, नैतिकता और सामाजिक मर्यादाएं कमजोर पड़ने लगती हैं। इसका प्रभाव समाज के हर स्तर पर दिखाई देता है—चाहे वह सड़कों पर हिंसा हो, सोशल मीडिया पर नफरत भरे भाषण हों, या संस्थानों में भ्रष्टाचार। 

अराजकता का एक प्रमुख कारण है सामाजिक और आर्थिक असमानता। जब समाज का एक वर्ग अवसरों से वंचित रहता है, तो असंतोष और विद्रोह जन्म लेते हैं। बेरोजगारी, शिक्षा की कमी और गरीबी इस आग में घी डालती हैं। इसके अलावा, राजनीतिक ध्रुवीकरण और नेताओं द्वारा भड़काऊ बयानबाजी भी समाज को बांटती है। हाल के वर्षों में, सोशल मीडिया ने गलत सूचनाओं और अफवाहों को फैलाने में बड़ी भूमिका निभाई है, जिससे सामाजिक तनाव बढ़ा है।

न्यायपालिका और प्रशासन में विश्वास की कमी भी अराजकता को बढ़ावा देती है। जब लोगों को लगता है कि कानून उनका साथ नहीं देगा, वे स्वयं न्याय करने की राह चुनते हैं, जिससे हिंसा और अस्थिरता बढ़ती है। उदाहरण के तौर पर, दिल्ली कोर्ट में जज को धमकी जैसी घटनाएं न्यायिक व्यवस्था पर सवाल उठाती हैं।

अराजकता से निपटने के लिए शिक्षा, संवाद और समावेशी नीतियां जरूरी हैं। समाज में जागरूकता फैलाने, आर्थिक असमानता कम करने और कानून के शासन को मजबूत करने से ही व्यवस्था बहाल हो सकती है। प्रत्येक नागरिक का दायित्व है कि वह अपने स्तर पर शांति और सहयोग को बढ़ावा दे। यदि हम सामूहिक रूप से इस दिशा में कदम नहीं उठाएंगे, तो अराजकता समाज के ताने-बाने को और कमजोर कर सकती है।


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